परमात्मा एक है। क्या यह सत्य है? क्या रास्ता भी एक?
Radha Soami- सब महात्माओं का यही अनुभव है कि जिस परमात्मा से हम मिलना चाहते हैं, वह एक है। यह नहीं की हिन्दुओं का कोई और या सिक्खों और ईसाइयों या मुस्लिम लोगों का कोई और है। परमात्मा सबका एक है और उससे मिलने का रास्ता भी एक ही है। परंतु जीव इस दुनिया में आकर सांसारिक रीति रिवाजों में पड़ गया है। वह बाहरी पूजा-पाठ मर फस गया है। और परमात्मा को भूल गया है।
सन्तों ने दी ये हिदायतें
इसलिए संत महात्मा हमें बार-बार यह हिदायत देते हैं कि भाई! उस परमात्मा का के घर जाने का रास्ता केवल नाम की कमाई के जरिए ही मिल सकता है। हमें उस परमात्मा के बनाए हुए नेक रास्ते पर चलना है। हमें किसी सच्चे संत की शरण में जा कर, उनके बताए गए वचनों पर अमल करना है। उनके द्वारा ही हम वह नेक रास्ता हासिल कर सकते हैं। नहीं, तो हम इसी तरह आवागमन के चक्कर में भटकते रहेंगे।
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बाबा जी हमें बाहरी पूजा-पाठ, कर्मकांड से दूर रहने की हिदायत देते रहते हैं। बताते हैं कि बाहरी पूजा-पाठ हमें मायाजाल फंसा लेती है। जिससे हम चौरासी के जेलखाने में भटक जाते हैं और हम परमात्मा से दूर हो जाते हैं। हम अपने नेक कार्य से बहुत दूर चले जाते हैं, क्योंकि बाहरी पूजा-पाठ से हमारा मन विचलित हो जाता है और हमारे अंदर डर बैठ जाता है। कि अगर हम यह नहीं करेंगे, तो हमारा यह नुकसान हो जाएगा, हमारा यह घाटा हो जाएगा। इसी डर के कारण हम उसे नेक कार्य को नहीं कर पाते। भजन-सुमिरन नहीं कर पाते।
बाहरी कर्मकांड से ये होता है नुकसान
हमें इसी डर को खत्म करना है और यह डर कैसे खत्म होगा! बाबाजी बताते हैं कि हमें किसी पूर्ण संत-सतगुरु की शरण लेनी होगी, क्योंकि उनको पूरा अनुभव होता है कि बाहरी कर्मकांड से क्या नुकसान है और भजन सुमिरन से क्या फायदा होता है।
फ़रमाते हैं यह डर केवल भजन-सुमिरन के द्वारा ही खत्म हो सकता हैं क्योंकि भजन-सुमिरन के द्वारा हम वह सच्चाई देख सकते हैं, जो बाहरी पूजा-पाठ से नहीं देख सकते। इसलिए हमें पूर्ण संत-सतगुरु की शरण लेना बहुत जरूरी हो जाता है। उनके हुकम अनुसार चलना है, उनके बताए हुए वचनों पर अमल करना है। भजन-सुमिरन करना है और अपने परमात्मा के घर का रास्ता पकड़ना है ताकि जल्द ही हम परमात्मा के पास पहुंच जाएं।
।।राधास्वामी।।
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