अगर इसको नही पढ़ा तो सब अधूरा ही समझो

संत महात्मा हमेशा समझाते आए हैं सिमरन और ध्यान कि हमें कुदरती आदत पड़ी हुई है। इसलिए इस कुदरती आदत से फायदा उठाओ। दुनिया के सिमरन और ध्यान के स्थान पर मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान करो। क्योंकि सिमरन को सिमरन काटेगा और ध्यान को ध्यान काटेगा। पानी की मारी हुई खेती पानी से ही हरी भरी होती है। 
दुनिया की नाशवान चीजों का सिमरन करके हम उनसे मोहब्बत किये बैठे हैं। उनमें से कोई भी चीज जो हमारा साथ देने वाली नहीं है। उनका मोह या प्यार हमें बार-बार देह के बंधनों की ओर ले आता है। हमें चाहिए कि उस मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान करें जो कभी फ़ना नहीं होता, जिसकी हमारी आत्मा अंश है और जिसके अंदर वह समाना चाहती है।
बाबा जी समझाते हैं :-
यह हमारा मन जो विषयों-विकारों में, दुनिया के मोह या प्यार में फंसकर हिरण की तरह भटकता फिरता है। जब यह राम नाम या शब्द के साथ जुड़ जाता है तो हमेशा के लिए बिंध जाता है। इसके अलावा और कोई विचार करना या इस मन को वश में करने का कोई और उपाय करना व्यर्थ है। सिर्फ सच्चे शब्द या सच नाम की कमाई करके ही हमारा मन निर्मल, पवित्र और पाक हो सकता है। सच्चे शब्द की कमाई करके ही हम चौरासी के दुखों से बच सकते हैं।
महाराज चरण सिंह
संतमत में ऐसी कोई भी खास प्रार्थनाएं नहीं है जिन्हें आप दिन में चार या पांच बार दोहरा लें। प्रार्थना के लिए शब्दों या भाषा की जरूरत नहीं है। प्रार्थना तो प्यार की भाषा है जो हमारे हृदय से प्रभु तक जाती है। प्रार्थना के समय आपके और मालिक के बीच में कोई दूसरा नहीं होता। जब आप प्रार्थना करते हैं तो संसार को भूल जाते हैं; मालिक रहता है और आप होते हैं। यही सच्ची प्रार्थना है, और यह प्रार्थना केवल भजन के द्वारा ही संभव होती है। जब हम यह भूल जाते हैं कि हम कौन हैं और कहां है। यहीं सच्ची प्रार्थना है।
                    || राधास्वामी ||

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