असलियत जानने बिना मुक्ति नहीं, यहां पर मुक्ति संभव

सबसे पहले तुम प्रभु की राज्य में पहुंचने का प्रयास करो, फिर तुम्हें सबकुछ स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा|


हमारा असल, हमारी आत्मा असीमित है| यह हर प्रकार की सीमा-बंधनों से मुक्त है| परंतु हमने अपनी तवज्जुह उस असीमित सम्पूर्ण प्रकृति से हटाकर, अपने व्यक्तित्व की सीमित, सापेक्ष, साधारण परिस्थितियों की ओर मोड़ ली है| जब तक हमारा ध्यान अपने यथार्थ यानी असलियत की ओर से हटा रहेगा, हम द्वैत में फँसे रहेंगे और उस परम आनंद से जो कि हमारी पहुंच में है, सदा अनजान रहेंगे| उससे दूर रहेंगे| संसार और इसकी वस्तुओं के मायाजाल में उलझ कर हम अपना जीवन बर्बाद कर देते हैं| बार-बार हम इस भौतिक जगत की माया और भ्रम का शिकार होते रहते हैं|
सूफी संत मौलाना रूम कहते हैं
    हमारी अवस्था उस सेवक के जैसी है जो अपनी राजा के हुक्म से किसी के लिए किसी दूसरे मुल्क में जाता है| वह सेवक उस मुल्क में जाकर कई अद्भुत और आश्चर्यजनक कार्य करता है और फिर अपने राजा के पास लौट आता है|
राज दरबार में राजा उससे पूछता है
    “क्या तुमने वह काम किया जिसके लिए मैंने तुम्हें भेजा था?”  सेवक ने जवाब दिया, ” मालिक!  मैं आपका बड़ा आभारी हूँ| जहां आपने मुझे भेजा था, वह एक अद्भुत स्थान है| वहां मेरी मुलाकात एक सुंदरी से हुई और मैंने उससे शादी कर ली| फिर हमारे बच्चे हुए और उनके साथ हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई, इसलिए मैंने एक दुकान खोल ली|”
   
   राजा ने बीच में टोका और पूछा, “परंतु उस काम का क्या हुआ जिसके लिए मैंने तुम्हें भेजा था? तुमने वह काम किया या नहीं?  मैंने तुम्हें शादी या बच्चे पैदा करने, धन कमाने या अन्य प्रकार की काम करने के लिए नहीं भेजा था|”
सेवक ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और बोला,” मालिक!  मुझे अफसोस है! मैं भूल गया था….|”
राजा बोला “तुम वही काम क्यों भूल गए जिसके लिए तुम्हें भेजा गया था? अब तुम्हें उसी काम के लिए दोबारा जाना होगा|” और यही कारण है कि हम भी बार-बार इस संसार में भेजे जाते हैं| क्योंकि हम अपना असलियत काम भूल जाते हैं| वह काम अभी अधूरा है| जब तक वह पूरा नहीं होगा| हमारा इस संसार में आना जाना लगा रहेगा|

इसीलिए संत महात्मा भजन सुमिरन पर जोर देते हैं| और बार-बार चेतावनी देते रहते हैं कि जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके भजन सुमिरन करे| मालिक की याद में बैठे और मालिक के द्वारा बताया गया काम पूरा करके ही हम अपने निजधाम पहुंचे ताकि हमारा मनुष्य जन्म में आने का मकसद पूरा हो|
                       ||राधा स्वामी ||

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